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प्रेमाश्रम--मुंशी प्रेमचंद

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ज्ञानशंकर भाई की बातें सुनकर विस्मित हो गये। यद्यपि इन विचारों में मौलिकता न थी। उन्होंने साम्यवाद के ग्रन्थों में इसका विवरण देखा था, लेकिन उनकी समझ में यह केवल मानव-समाज का आदर्श-मात्र था। इस आदर्श को व्यावहारिक रूप में देख कर उन्हें आश्चर्य हुआ। वह अगर इस विषय पर तर्क करना चाहते तो अपनी सबल युक्तियों से प्रेमशंकर को निरुत्तर कर देते। लेकिन यह समय इन विचारों के समर्थन करने का था, न कि अपनी वाक्पटुता दिखाने का। बोले, भाई साहब! यह समाज-संगठन का महान् आदर्श है, और मुझे गर्व है कि आप केवल विचार से नहीं व्यवहार से भी उसके भक्त हैं। अमेरिका की स्वतन्त्र भूमि में इन भावों का जाग्रत होना स्वाभाविक है। यहाँ तो घर से बाहर निकलने की नौबत ही नहीं आयी। आत्म-बल और बुद्धि-सामर्थ्य से भी वंचित हूँ। मेरे संकल्प इतने पवित्र और उत्कृष्ट क्योंकर हो सकते हैं, मेरी संकीर्ण दृष्टि में तो यही जमींदारी, जिसे आप (मुस्कराकर) बीच की दलाली समझतें हैं, जीवन का सर्वश्रेष्ठ रूप है। हाँ, सम्भव है आगे चलकर आपके सत्संग से मुझमें भी सद्विचार उत्पन्न हो जायँ।

प्रेम– तुम अपने ही मन में विचार करो। यह कहाँ का न्याय है कि मिहनत तो कोई करे, उसकी रक्षा का भार किसी दूसरे पर हो, और रुपये उगाहें हम?

ज्ञान– बात तो यथार्थ है, लेकिन परम्परा से यह परिपाटी ऐसी चली आती है। इसमें किसी प्रकार का संशोधन करने का ध्यान ही नहीं होता।

प्रेम– तो तुम्हारा गोरखपुर जाने का कब तक इरादा है?

ज्ञान– पहले आप मुझे इसका पूरा विश्वास दिला दें कि लखनपुर के सम्बन्ध में आपने जो कहा है वह निश्चयात्मक है।

प्रेम– उसे तुम अटल समझो। मैंने तुमसे एक बार अपने हिस्से का मुनाफा माँगा था। उस समय मेरे विचार पक्के न थे। मेरा हाथ भी तंग था। उस पर मैं बहुत लज्जित हूँ। ईश्वर ने चाहा तो अब तुम मुझे इस प्रतिज्ञा पर दृढ़ पाओगे।

ज्ञान– तो होली तक गोरखपुर चला जाऊँगा। कोई हर्ज न हो तो आप भी घर चलें। माया आपको बहुत पूछा करता है।

प्रेम– आज तो अवकाश नहीं, फिर कभी आऊँगा।

ज्ञानशंकर यहाँ से चले तो उनका चित्त बहुत प्रसन्न था। बहुत दिनों के बाद मेरे मन की अभिलाषा पूरी हुई! अब मैं पूरे लखनपुर का स्वामी हूँ। यहाँ अब कोई मेरा हाथ पकड़ने वाला नहीं। जो चाहूँ निर्विघ्न कर सकता हूँ। भैया के बचन पक्के हैं, अब वह कदापि दुलख नहीं सकते। वह इस्तीफा लिख देते तो बात और पक्की हो जाती, लेकिन इस पर जोर देने से मेरी क्षुद्रता प्रकट होगी। अभी इतना ही बहुत है, आगे चल कर देखा जायेगा।

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1 Comments

Gunjan Kamal

18-Apr-2022 05:32 PM

👏🙏🏻👌

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